देखते हैं, कौन क्या उखाड़ लेगा !

दौलतें हाथ में हों,दिमाग दौड़ पड़ते हैं ‘उदय’
हमने गूंगों को भी देखा है, गुनगुनाते हुए !
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तिलस्मी बाजार है, मुफ्त के रत्न, पत्थर समझ लेते हैं लोग
कहीं ऐसा न हो, रत्न पड़े रहें और कौड़ियां बिक जाएं ‘उदय’ !
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“जाम, आम, पराग, फूल, खुशबू, जिस्म, यही जिन्दगी है
प्रेम, समर्पण, आस्था, प्रार्थना, भाईचारा, दिखाबा हुआ है !”
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उतनी ठंड नहीं है, इस सर्द में ‘उदय’
जितनी गर्मी होती है, सुर्ख नोटों में !

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लूट, लूट, लूट, घोटाले कर लूट,
देखते हैं, कौन क्या उखाड़ लेगा !
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उफ़ ! यार, तुमको ठीक से घोटाले करने भी नहीं आते
मिल बाँट के कर रहे हो, फिर भी बदनामी की तौमत !
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चलो एक काम करो, इस बार बदनामी नहीं चाहिए
एक ऐसी महा योजना बनाओ, जो सिर्फ हमें पता रहे !
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कुछ तो ख़ास है, टूट पड़े हैं लोग शुभकामना देने
सच ! जन्मदिन तो वो सालों से, हैं मनाते आये !
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तेरी खामोशी का असर, मुझ पे उतर आया है
जब से देखा है तुझे, मैं खामोश हुआ बैठा हूँ !

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बदल रहा था रंग, जो गिरगिट सा भीड़ में
कोई कह रहा था उसको, वो पत्रकार है !

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